पूनिया से परेशान माया पहुंची मनमोहन की खुशामद में
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दिल्ली:अचानक मायावती का प्रशासनिक दल बल के साथ दिल्ली पहुंचना और एकांत में प्रधानमंत्री से एक घण्टे मुलाकात करना इतनी साधारण घटना भी नहीं है कि इसे महज एक खबर मानकर इति कर लिया जाए. मायावती तो पहले कभी राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में बुलाने पर नहीं आती और अचानक ही बाढ़ का पैसा बढ़ाने की मांग लेकर प्रधानमंत्री से मिलने पहुंच जाएगी, बात इतनी साधारण नहीं है.
मायावती अपने एक पुराने "वफादार" की शिकायत करने आयी थीं जो पांच दिन पहले ही अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बने हैं. उनका नाम है पीएल पूनिया. केन्द्र सरकार को अपरोक्ष समर्थन दे रही मायावती कांग्रेस द्वारा पूर्व नौकरशाह पी.एल. पूनिया को बढ़ावा दिए जाने से नाखुश हैं। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से लोकसभा के लिए चुने गए पूनिया को पांच दिन पहले ही राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। पद संभालने के बाद पी.एल. पूनिया ने उत्तर प्रदेश सरकार पर दलितों की उपेक्षा करने और स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के पैसे का गलत उपयोग करने का आरोप लगाया था। 15 अक्टूबर को आए इस बयान पर बीएसपी की उत्तर प्रदेश इकाई ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा मूल के पूर्व नौकरशाह पी.एल. पूनिया मायावती के बेहद करीबी रहे हैं। मायावती जब पहले मुख्यमंत्री बनी थी तब पूनिया उनके सचिव थे। तब उन्हें मायावती की आंख और कान माना जाता था। लेकिन ताज कारिडोर मामले में पी.एल. पूनिया ने मायावती का साथ छोड़ दिया था। मायावती तभी से उनसे नाराज हैं। नाराजगी का आलम यह है कि सेवानिवृत्त होने के बाद जब पूनिया ने उत्तर प्रदेश से विधानसभा चुनाव लड़ा तो मायावती ने घेराबंदी करके उन्हें हरवा दिया। लोकसभा चुनाव में मायावती की नही चली। उनके धुर विरोधी पूनिया 2009 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए थे। उस समय भी मायावती ने बीएसपी की बैठक में पार्टी की हार की समीक्षा करते हुए पूनिया पर ही हमला किया था।
अब पूनिया की नियुक्ति करके कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश चुनाव में मायावती को और अधिक कमजोर करने की बात पुख्ता कर दी है. कांग्रेस जानती है कि पूनिया ही हैं जो मायावती की कमजोर कड़ियों को जानते समझते हैं और दलित उत्थान के नाम पर मायावती सरकार के लूप होल्स पकड़ सकते हैं जिन्हें कांग्रेस मुद्दा बना सकती है. ऐसे में मायावती परेशान होकर प्रधानमंत्री से मिलने न पहुंचती तो क्या करती?

