सबको एक लाठी से नहीं हांक सकते, हमारा रवैया यह नहीं हो सकता कि एक साइज सबको फिट करेगा- प्रधानमंत्री
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तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली:जम्मू कश्मीर में जारी हिंसक प्रदर्शनों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों के भीड़ नियंत्रण कदमों पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है
नई दिल्ली में पुलिस महानिदेशकों और इंस्पेक्टर जनरलों की तीन दिवसीय गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री सिंह ने कहा, "जम्मू और कश्मीर में उग्रपंथी गतिविधियों में कमी के बावजूद राज्य में सार्वजनिक व्यवस्था गंभीर चिंता का कारण बन गई है. हमें मानक संचालन प्रक्रियाओं और सार्वजनिक आंदोलनों से निबटने में भीड़ नियंत्रण के कदमों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है." प्रधानमंत्री ने कहा कि सबको एक लाठी से नहीं हांक सकते, हमारा रवैया यह नहीं हो सकता कि एक साइज सबको फिट करेगा.
मनमोहन सिंह का बयान ऐसे समय में आया है जब भारत के विवादास्पद राज्य में हिंसक प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस की कार्रवाई में 60 लोगों के मारे जाने की कटु आलोचना हो रही है. सिंह ने गृहमंत्री पी चिदंबरम से एक उच्चस्तरीय टास्क फोर्स बनाने को कहा है जिसका काम अगले दो से तीन महीने के अंदर भीड़ नियंत्रण के लिए गैर घातक कदमों पर सुझाव देना होगा.
भारतीय प्रधानमंत्री ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से कहा कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग के एक मानक के बदले दूसरे देशों से स्थिति के मुताबिक कदम उठाने की प्रक्रियाएं तय की हैं. उन्होंने रैपिड एक्शन फोर्स के सफल भीड़ नियंत्रण अनुभवों का हवाला देते हुएकहा कि दूसरे पुलिस बलों द्वारा इसे लागू करने की जांच की जा सकती है
मनमोहन सिंह ने माना है कि देश में अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ रही खाई समाज में अपराध को बढ़ावा दे रहा है। प्रधानमंत्री ने पुलिस अधिकारियों के सम्मेलन में कहा कि बढ़ती आर्थिक असमानता उन समस्याओं में से एक है, जिनका सामना पुलिस को करना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि भारत में अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ने का सिलसिला खुली अर्थव्यवस्था (उदारीकरण) का दौर शुरू होने के बाद ही तेज हुआ है। उदारीकरण की शुरुआत का श्रेय मनमोहन सिंह को ही जाता है। 1991 में जब उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था, तब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। वर्ष 2003 से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 से 9 फीसदी की तरक्की दर्ज की जा रही है। साथ ही शहरी इलाकों में नए घर बन रहे हैं और शॉपिंग मॉल की संख्या भी काफी है। लेकिन अधिसंख्य लोगों की हालत खस्ता है। हाल यह है कि देश में 5 साल से कम उम्र के 43.5 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। यह स्थिति अफ्रीकी महाद्वीप के कई देशों से भी बुरी है। 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत में यह आंकड़ा इससे थोड़ा ही ज्यादा (करीब 52 फीसदी) था।
भारत में रोज 50 रुपये से भी कम कमाने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। दूसरी ओर, लखपती या करोड़पति लोगों की संख्या भी यहां बड़ी तेजी से बढ़ रही है। 2007 में देश में करोड़पतियों की संख्या 22.3 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी और इनकी संख्या 1,23,000 पहुंच गई। दूसरी ओर, 50 रुपये से भी कम पर रोज जिंदगी बसर करने वाले भारतीयों की संख्या 35 करोड़ और सौ रुपये से भी कम कमाने वालों की संख्या 70 करोड़ थी। यानी हर एक करोड़पति के पीछे 7000 गरीब।
उदारीकरण के दौर में नक्सली समस्या भी काफी गंभीर हुई है। प्रधानमंत्री इसे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से सबसे बड़ा खतरा बता चुके हैं। आज उन्होंने कहा कि इस समस्या के गंभीर रूप लेने की एक वजह भी अमीर-गरीब के बीच बढ़ी खाई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि नक्सल समस्या से प्रभावित इलाकों में आर्थिक तरक्की को बढ़ावा देकर माओवादियों को काबू किया जा सकता है। पीएम के मुताबिक नक्सली गरीब किसानों के असंतोष का फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विद्रोही 'हमारे लोग' थे और नक्सल हिंसा से प्रभावित इलाकों में विकास के लिए सरकार तैयार है। नक्सल विद्रोही मध्य और पूर्वी भारत में पिछले कई दशकों से सक्रिय थे, लेकिन हथियारबंद हिंसा का रास्ता उन्होंने पिछले कुछ सालों से तेज हुआ है, जिसके तहत अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस पर हमलों की संख्या बढ़ गई है।
पुलिस प्रमुखों के सम्मेलन के दूसरे दिन डॉ. सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को चौतरफा चुनौती मिल रही है। इसमें कश्मीर में तनाव, नक्सली हिंसा और आपराधिक गतिविधियों में इजाफा शामिल है। बढ़ती आर्थिक, क्षेत्रीय, भाषायी और सामुदायिक असमानता पुलिस के लिए एक चुनौती है। नॉन स्टेट ऐक्टर्स (ऐसे तत्व जो किसी देश के नागरिक न हों) की बढ़ती मौजूदगी, कट्टर समूहों और वाम विचारों वाले चरमपंथियों ने समस्या को बढ़ा दिया है
मनमोहन सिंह ने माना है कि देश में अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ रही खाई समाज में अपराध को बढ़ावा दे रहा है। प्रधानमंत्री ने पुलिस अधिकारियों के सम्मेलन में कहा कि बढ़ती आर्थिक असमानता उन समस्याओं में से एक है, जिनका सामना पुलिस को करना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि भारत में अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ने का सिलसिला खुली अर्थव्यवस्था (उदारीकरण) का दौर शुरू होने के बाद ही तेज हुआ है। उदारीकरण की शुरुआत का श्रेय मनमोहन सिंह को ही जाता है। 1991 में जब उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था, तब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। वर्ष 2003 से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 से 9 फीसदी की तरक्की दर्ज की जा रही है। साथ ही शहरी इलाकों में नए घर बन रहे हैं और शॉपिंग मॉल की संख्या भी काफी है। लेकिन अधिसंख्य लोगों की हालत खस्ता है। हाल यह है कि देश में 5 साल से कम उम्र के 43.5 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। यह स्थिति अफ्रीकी महाद्वीप के कई देशों से भी बुरी है। 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत में यह आंकड़ा इससे थोड़ा ही ज्यादा (करीब 52 फीसदी) था।
भारत में रोज 50 रुपये से भी कम कमाने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। दूसरी ओर, लखपती या करोड़पति लोगों की संख्या भी यहां बड़ी तेजी से बढ़ रही है। 2007 में देश में करोड़पतियों की संख्या 22.3 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी और इनकी संख्या 1,23,000 पहुंच गई। दूसरी ओर, 50 रुपये से भी कम पर रोज जिंदगी बसर करने वाले भारतीयों की संख्या 35 करोड़ और सौ रुपये से भी कम कमाने वालों की संख्या 70 करोड़ थी। यानी हर एक करोड़पति के पीछे 7000 गरीब।
उदारीकरण के दौर में नक्सली समस्या भी काफी गंभीर हुई है। प्रधानमंत्री इसे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से सबसे बड़ा खतरा बता चुके हैं। आज उन्होंने कहा कि इस समस्या के गंभीर रूप लेने की एक वजह भी अमीर-गरीब के बीच बढ़ी खाई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि नक्सल समस्या से प्रभावित इलाकों में आर्थिक तरक्की को बढ़ावा देकर माओवादियों को काबू किया जा सकता है। पीएम के मुताबिक नक्सली गरीब किसानों के असंतोष का फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विद्रोही 'हमारे लोग' थे और नक्सल हिंसा से प्रभावित इलाकों में विकास के लिए सरकार तैयार है। नक्सल विद्रोही मध्य और पूर्वी भारत में पिछले कई दशकों से सक्रिय थे, लेकिन हथियारबंद हिंसा का रास्ता उन्होंने पिछले कुछ सालों से तेज हुआ है, जिसके तहत अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस पर हमलों की संख्या बढ़ गई है।
पुलिस प्रमुखों के सम्मेलन के दूसरे दिन डॉ. सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को चौतरफा चुनौती मिल रही है। इसमें कश्मीर में तनाव, नक्सली हिंसा और आपराधिक गतिविधियों में इजाफा शामिल है। बढ़ती आर्थिक, क्षेत्रीय, भाषायी और सामुदायिक असमानता पुलिस के लिए एक चुनौती है। नॉन स्टेट ऐक्टर्स (ऐसे तत्व जो किसी देश के नागरिक न हों) की बढ़ती मौजूदगी, कट्टर समूहों और वाम विचारों वाले चरमपंथियों ने समस्या को बढ़ा दिया है

