उत्तर प्रदेश के हजारों किसानो ने देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद को घेरा
http://tehalkatodayindia.blogspot.com/2010/08/blog-post_3877.html
तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली. सरकार 13 साल में 21 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन दूसरे कामों के लिए ले चुकी है। सरकार की अधिग्रहण नीति के विरोध में उत्तर प्रदेश के हजारों किसान आज देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद को घेर लिया हैं। वे इस बात से गुस्सा हैं कि विकास के नाम पर सरकार उनकी जमीन ले रही है और बदले में कम मुआवजा देकर उनकी रोजी-रोटी छीन रही है।
जमीन अधिग्रहण को लेकर सरकार की नीति वास्तव में ऐसी है कि लोगों के सामने भूखों मरने की नौबत आ सकती है। देश की करीब सवा अरब आबादी में से दो-तिहाई खेती पर निर्भर है। बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते गैर कृषि कार्यों के लिए जमीन की जरूरत बढ़ी है, लेकिन सरकार यह जरूरत पूरी करने के लिए खेती लायक जमीन ले रही है। यह अनाज के संकट को न्यौता देने वाला कदम है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1990 से 2003 के 13 वर्षों में ही सरकार ने 21 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन गैर कृषि कामों के लिए ले ली। इतनी जमीन से पैदा होने वाले अनाज से करोड़ों लोगों का पेट भरा जा सकता था।
2006 से 2008 के बीच भारत में कृषि क्षेत्र में मात्र 2.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। घटती उपज और खेती की बढ़ती लागत के चलते हाल के वर्षों में दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में करीब 2 लाख किसानों ने खुदकुशी कर ली। सरकार की गलत जमीन अधिग्रहण नीति भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक है।
जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों का विरोध नया नहीं है। सालों से जहां कहीं भी सरकार किसानों की जमीन लेती है, मुआवजे को लेकर हंगामा होता है। इसके चलते सैकड़ों औद्योगिक परियोजनाएं अधर में लटक चुकी हैं और लटकी हुई हैं। इसके बावजूद सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।
जमीन अधिग्रहण की जरूरतशहरी रिहाइश बढ़ रही है, उद्योग-धंधे बढ़ रहे हैं। ऐसे में जमीन की जरूरत भी बढ़ रही है। मुश्किल यह है कि आबादी बढ़ने के साथ अनाज की भी जरूरत बढ़ रही है। यानी सवा अरब से भी ज्यादा लोगों का पेट भरने के लिए खेती के लिए ज्यादा जमीन चाहिए। पर स्थिति यह है कि खेती लायक जमीन औद्योगिक परियोजनाओं की भेंट चढ़ रही हैं। 2006 से सरकार ने 568 विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) को मंजूरी दी है। यह बात अलग है कि आधे से भी कम एसईजेड मूर्त रूप ले सके हैं। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के मुताबिक जमीन अधिग्रहण से जुड़ी ठोस नीति के अभाव में सौ अरब डॉलर से भी ज्यादा का निवेश प्रभावित हो रहा है।
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के महानिदेशक रह चुके सी. बनर्जी कहते हैं कि जमीन अधिग्रहण से जुड़ी समस्या देश में उद्योग-धंधों के विकास को बुरी तरह प्रभावित करेगी, जिसका सीधा असर देश की समग्र आर्थिक प्रगति पर पड़ेगा।दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर सुरेश तेंदुलकर कहते हैं, ‘देश में श्रम शक्ति बढ़ रही है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार कृषि क्षेत्र में नहीं मिल सकता। इसलिए आर्थिक तरक्की के लिए गैर कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देना ही होगा।’ देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 17 फीसदी है, जबकि उद्योग जगत जीडीपी में 29 फीसदी हिस्सेदारी कर रहा है। इसलिए भी उद्योगों का विकास जरूरी है, पर कृषि की कीमत पर यह विकास खतरनाक नतीजे ला सकता है।
कोट्स हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि किसानों को मुश्किल नहीं हो और उनके हितों को चोट नहीं पहुंचे, क्योंकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में किसानों की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। - प्रणव मुखर्जी, वित्त मंत्री
भारत एक ही समय में कई शताब्दियों की जिंदगी जी रहा है। किसी न किसी रूप में हम एक साथ तरक्की भी करते हैं और पिछड़ते भी जाते हैं। - अरुंधति राय, बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता
राजधानी दिल्ली में जुटे। करीब 10- हजार किसानों ने यहां जंतर मंतर पर रैली की, जिसे राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह, बीजेपी नेता अरुण जेटली, सीपीएम की वृंदा करात, सीपीआई नेता एबी वर्धन और लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान ने संबोधित किया। नेताओं ने सरकार से मांग की कि सालों पुराने भूमि अधिग्रहण कानून को तत्काल रद्द किया जाए।
रालोद नेता अजित सिंह और वृंदा करात ने किसानों के इस मुद्दे को संसद में उठाने की बात कही। उन्होंने कहा कि वे इसे बदलने के लिए संसद में मामला उठाएंगे।
दिल्ली में किसान आज सुबह से ही जुटने लगे थे। दोपहर तक बड़ी संख्या में किसान यहां जमा हो गए थे। किसान दिल्ली -आगरा एक्सप्रेस वे के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कम मुआवजा दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। उनकी मांग है कि उन्हें भी उतना ही मुआवजा दिया जाए, जितना नोएडा के किसानों को दिया गया है।
किसानों की मांगों के समर्थन में रालोद नेता अजित सिंह भी जंतर मंतर पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर आज लड़ाई की शुरुआत हुई है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून को तत्काल बदलने की मांग की। सीपीएम नेता वृंदा करात भी किसानों के समर्थन में वहां पहुंचीं।
ट्रैफिक जाम की बनी स्थिति
किसान गुरुवार सुबह से ही दिल्ली से लगी नोयडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद की सीमाओं से आ रहे थे. इस वजह से कई जगह चक्का जाम की स्थिति बनी। राजघाट, बाराखंबा रोड, जनपथ आदि रास्तों पर गाड़ियों की लंबी लंबी कतारें देखीं गईं।
कई दिनों से चल रहा है आंदोलन
अपनी मांगों को लेकर किसान कई दिनों से आंदोलनरत हैं। इससे पहले उन्होंने उत्त्र प्रदेश के अलीगढ़ में टप्पल को अपने आंदोलन का केंद्र बना रखा था। हजारों किसान टप्पल में एकजुट होकर धरने पर बैठे थे। बीच में किसानों का आंदोलन हिंसक भी हो गया था। किसानों ने प्रशासन की कार्रवाई के विरोध में हिंसा व आगजनी की थी, जिसके बाद पुलिस ने गोली चलाई। गोली से चार किसानों की मौत हो गई थी।
नई दिल्ली. सरकार 13 साल में 21 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन दूसरे कामों के लिए ले चुकी है। सरकार की अधिग्रहण नीति के विरोध में उत्तर प्रदेश के हजारों किसान आज देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद को घेर लिया हैं। वे इस बात से गुस्सा हैं कि विकास के नाम पर सरकार उनकी जमीन ले रही है और बदले में कम मुआवजा देकर उनकी रोजी-रोटी छीन रही है।
जमीन अधिग्रहण को लेकर सरकार की नीति वास्तव में ऐसी है कि लोगों के सामने भूखों मरने की नौबत आ सकती है। देश की करीब सवा अरब आबादी में से दो-तिहाई खेती पर निर्भर है। बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते गैर कृषि कार्यों के लिए जमीन की जरूरत बढ़ी है, लेकिन सरकार यह जरूरत पूरी करने के लिए खेती लायक जमीन ले रही है। यह अनाज के संकट को न्यौता देने वाला कदम है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1990 से 2003 के 13 वर्षों में ही सरकार ने 21 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन गैर कृषि कामों के लिए ले ली। इतनी जमीन से पैदा होने वाले अनाज से करोड़ों लोगों का पेट भरा जा सकता था।
2006 से 2008 के बीच भारत में कृषि क्षेत्र में मात्र 2.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। घटती उपज और खेती की बढ़ती लागत के चलते हाल के वर्षों में दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में करीब 2 लाख किसानों ने खुदकुशी कर ली। सरकार की गलत जमीन अधिग्रहण नीति भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक है।
जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों का विरोध नया नहीं है। सालों से जहां कहीं भी सरकार किसानों की जमीन लेती है, मुआवजे को लेकर हंगामा होता है। इसके चलते सैकड़ों औद्योगिक परियोजनाएं अधर में लटक चुकी हैं और लटकी हुई हैं। इसके बावजूद सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।
जमीन अधिग्रहण की जरूरतशहरी रिहाइश बढ़ रही है, उद्योग-धंधे बढ़ रहे हैं। ऐसे में जमीन की जरूरत भी बढ़ रही है। मुश्किल यह है कि आबादी बढ़ने के साथ अनाज की भी जरूरत बढ़ रही है। यानी सवा अरब से भी ज्यादा लोगों का पेट भरने के लिए खेती के लिए ज्यादा जमीन चाहिए। पर स्थिति यह है कि खेती लायक जमीन औद्योगिक परियोजनाओं की भेंट चढ़ रही हैं। 2006 से सरकार ने 568 विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) को मंजूरी दी है। यह बात अलग है कि आधे से भी कम एसईजेड मूर्त रूप ले सके हैं। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के मुताबिक जमीन अधिग्रहण से जुड़ी ठोस नीति के अभाव में सौ अरब डॉलर से भी ज्यादा का निवेश प्रभावित हो रहा है।
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के महानिदेशक रह चुके सी. बनर्जी कहते हैं कि जमीन अधिग्रहण से जुड़ी समस्या देश में उद्योग-धंधों के विकास को बुरी तरह प्रभावित करेगी, जिसका सीधा असर देश की समग्र आर्थिक प्रगति पर पड़ेगा।दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर सुरेश तेंदुलकर कहते हैं, ‘देश में श्रम शक्ति बढ़ रही है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार कृषि क्षेत्र में नहीं मिल सकता। इसलिए आर्थिक तरक्की के लिए गैर कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देना ही होगा।’ देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 17 फीसदी है, जबकि उद्योग जगत जीडीपी में 29 फीसदी हिस्सेदारी कर रहा है। इसलिए भी उद्योगों का विकास जरूरी है, पर कृषि की कीमत पर यह विकास खतरनाक नतीजे ला सकता है।
कोट्स हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि किसानों को मुश्किल नहीं हो और उनके हितों को चोट नहीं पहुंचे, क्योंकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में किसानों की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। - प्रणव मुखर्जी, वित्त मंत्री
भारत एक ही समय में कई शताब्दियों की जिंदगी जी रहा है। किसी न किसी रूप में हम एक साथ तरक्की भी करते हैं और पिछड़ते भी जाते हैं। - अरुंधति राय, बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता
राजधानी दिल्ली में जुटे। करीब 10- हजार किसानों ने यहां जंतर मंतर पर रैली की, जिसे राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह, बीजेपी नेता अरुण जेटली, सीपीएम की वृंदा करात, सीपीआई नेता एबी वर्धन और लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान ने संबोधित किया। नेताओं ने सरकार से मांग की कि सालों पुराने भूमि अधिग्रहण कानून को तत्काल रद्द किया जाए।
रालोद नेता अजित सिंह और वृंदा करात ने किसानों के इस मुद्दे को संसद में उठाने की बात कही। उन्होंने कहा कि वे इसे बदलने के लिए संसद में मामला उठाएंगे।
दिल्ली में किसान आज सुबह से ही जुटने लगे थे। दोपहर तक बड़ी संख्या में किसान यहां जमा हो गए थे। किसान दिल्ली -आगरा एक्सप्रेस वे के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कम मुआवजा दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। उनकी मांग है कि उन्हें भी उतना ही मुआवजा दिया जाए, जितना नोएडा के किसानों को दिया गया है।
किसानों की मांगों के समर्थन में रालोद नेता अजित सिंह भी जंतर मंतर पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर आज लड़ाई की शुरुआत हुई है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून को तत्काल बदलने की मांग की। सीपीएम नेता वृंदा करात भी किसानों के समर्थन में वहां पहुंचीं।
ट्रैफिक जाम की बनी स्थिति
किसान गुरुवार सुबह से ही दिल्ली से लगी नोयडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद की सीमाओं से आ रहे थे. इस वजह से कई जगह चक्का जाम की स्थिति बनी। राजघाट, बाराखंबा रोड, जनपथ आदि रास्तों पर गाड़ियों की लंबी लंबी कतारें देखीं गईं।
कई दिनों से चल रहा है आंदोलन
अपनी मांगों को लेकर किसान कई दिनों से आंदोलनरत हैं। इससे पहले उन्होंने उत्त्र प्रदेश के अलीगढ़ में टप्पल को अपने आंदोलन का केंद्र बना रखा था। हजारों किसान टप्पल में एकजुट होकर धरने पर बैठे थे। बीच में किसानों का आंदोलन हिंसक भी हो गया था। किसानों ने प्रशासन की कार्रवाई के विरोध में हिंसा व आगजनी की थी, जिसके बाद पुलिस ने गोली चलाई। गोली से चार किसानों की मौत हो गई थी।
