3 साल के गृहयुद्ध में कैसे बदल गया सीरिया, देखें पहले और अब की तस्वीरें
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एक वक्त में इस्लामिक प्रभुता का केंद्र रहे
सीरिया ने लंबे वक्त तक आक्रमण और कब्जे का दौर देखा है। सीरिया ने रोमन और
मंगोलों का दौर देखा, तो फ्रांस का भी 25 साल का लंबा शासन काल देखा।
हालांकि, 15 अप्रैल, 1946 में सीरिया पूरी तरह से फ्रांस के प्रभाव से
मुक्त हो गया, लेकिन देश संघर्ष के दौर से ज्यादा दिन मुक्त नहीं रह पाया।
सीरिया 2011 से फिर विद्रोह और संघर्ष की आग में जल रहा है।
सीरिया में सरकार और विद्रोहियों के बीच संघर्ष जारी है। सत्ता और
विद्रोहियों के बीच की इस लड़ाई में नुकसान आम सीरियाई नागरिकों का हो रहा
है। युद्ध और संघर्ष में कुछ ऐसे हालात बने कि कभी बहुमंजिला दिखने वाली
इमारतें खंडहरों में तब्दील हो गई हैं।
इस गृहयुद्ध में सीरिया ने अपने लोगों के साथ-साथ उन ऐतिहासिक इमारतों
और स्मारकों को भी खो दिया है, जो देश की संस्कृति और वास्तुकला की पहचान
थीं। गृहयुद्ध से पहले और बाद की तस्वीरों में विनाश के इस असर को साफ देखा
जा सकता है।
क्या है संघर्ष की वजह
सीरिया में अभी ‘बाथ पार्टी’ का शासन है और बशर-अल-असद यहां के
राष्ट्रपति हैं। सीरिया में बशर-अल-असद ने साल 2000 में अपने पिता से सत्ता
हासिल की थी। उनके पिता हफिज अल असद 1971 से सीरिया की सत्ता पर काबिज थे।
विद्रोहियों की मांग है कि बशर सत्ता छोड़ें और ‘बाथ पार्टी’ के शासन का
खात्मा हो। राष्ट्रपति बशर-अल-असद सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं हैं और
विद्रोही अपनी मांगें माने जाने से पहले किसी भी सूरत में झुकना नहीं
चाहते।
टकराव में क्यों बहा खून
अप्रैल 2011 में सीरियाई सेना को क्रांति को दबाने के निर्देश दिए गए।
सैनिकों ने पूरे देश में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। महीनों की
सैन्य घेराबंदी के बाद यह विरोध सशस्त्र विद्रोह में तब्दील हो गया।
सीरियाई सरकार को रूस और ईरान से समर्थन हासिल है तो विद्रोहियों को कतर और
सऊदी अरब से हथियार दिए जा रहे हैं।
गईं लाखों जानें
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया के गृहयुद्ध में जून
2013 तक करीब 1 लाख लोग जान गंवा चुके थे, लेकिन सितंबर 2013 तक मौत का
आंकड़ा 1 लाख 20 हजार तक पहुंच गया। इसके अलावा, विद्रोह कर रहे हजारों
छात्रों, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालकर उन्हें प्रताड़ित
किया गया। सीरिया में कैदियों को दिए जा रहे टॉर्चर की कुछ तस्वीरें भी
सामने आईं। करीब 11000 कैदियों को यातना देकर मौत के घाट उतार दिया गया।
उजड़ गया मुल्क
विद्रोहियों और सरकार के बीच चल रही इस लड़ाई में कोई भी झुकने को
तैयार नहीं है, लेकिन दोनों पक्षों के अड़ियल रवैए के चलते नुकसान आम जनता
का हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 40 लाख लोगों
का आशियाना उनसे छिन गया और उन्हें बेघर होना पड़ा। 30 लाख से भी ज्यादा
लोग देश छोड़ चुके हैं और पड़ोसी देशों में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं।
लाखों लोगों के पास न तो खाने के लिए दो जून की रोटी है और न पीने को पानी।
सबसे ज्यादा खराब हालत मुआदामियत अल-शाम शहर में है। 2013 में 12 हजार
लोगों की ठंड में ठिठुरकर मौत हो गई थी। अब सीरिया के पास बची है, तो युद्ध
विराम की असंभव लगती आस और संघर्ष की कड़वी यादें।