लालू प्रसाद यादव: सुर्खियों में रहने वाला चेहरा
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राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित चेहरों से एक हैं.
भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद वो अपने अनूठे अंदाज़ और दिलचस्प बातों की वजह से अकसर सुर्खियों में रहते हैं.
उन्होंने और उनकी पत्नी राबड़ी देवी
ने 15 साल तक बिहार में राज किया. इसके बाद बतौर रेल मंत्री भी लालू प्रसाद
यादव खासे चर्चा में रहे.
लालू प्रसाद यादव का दावा है कि वो घाटे में चलने
वाले रेलवे को मुनाफे में ले आए. यही नहीं, इसके बाद उन्होंने आईआईएम से
लेकर हावर्ड तक छात्रों को बेहतर प्रबंधन का पाठ पढ़ाया.
ये बात अलग है कि उनके बाद रेल मंत्री पद का पद संभालने वाली ममता बनर्जी ने इसे आंकड़ों की बाजीगरी बताया था.
माई गठजोड़ से कामयाबी
बिहार में एक गरीब परिवार में पैदा होने वाले लालू प्रसाद यादव ने सत्ता के गलियारों तक पहुंचने में लंबा सफर तय किया है.
समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण से प्रेरित होकर वो
छात्र राजनीति में आए और 29 वर्ष की उम्र में पहली बार सांसद चुन लिए गए.
जनता पार्टी के टिकट पर संसद पहुंचने वाले लालू प्रसाद उस वक्त सबसे युवा
सांसदों में से एक थे.
इसके बाद अगले दस साल में वो बिहार की राजनीति में
अहम ताकत बन गए और मुस्लिम और यादव मतदाताओं में उन्हें खासी लोकप्रियता
हासिल हुई.
बिहार में मुसलमान मतदाता पारंपरिक तौर पर
कांग्रेस को वोट देते थे लेकिन 1989 में भागलपुर दंगों के बाद मुस्लिम
मतदाता बड़ी संख्या में लालू प्रसाद यादव का समर्थन करने लगे.
लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम और यादव (माई) गठजोड़ के सहारे कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ीं.
1989 के आम चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव में
लालू प्रसाद यादव ने राज्य में राष्ट्रीय मोर्चे का सफलतापूर्वक नेतृत्व
किया, जिसके बाद वो 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री चुन लिए गए.
चारा घोटाला
लेकिन उनकी मुश्किलें 1996 में उस वक्त शुरू हुईं
जब पुलिस ने एक बड़ा घोटाला उजागर किया जिसमें राज्य के बड़े नेताओं और
अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे.
मीडिया में इसे ‘चारा घोटाले’ का नाम दिया गया जिसमें जानवरों का चारा खरीदने के लिए आवंटित करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई.
चाइबासा कोषागार से 37.7 करोड़ रुपये निकालने के
मामले में रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने अब लालू प्रसाद यादव और 44 अन्य
लोगों को दोषी ठहराया है.
लालू यादव ने दावा किया था कि चारा घोटाला विपक्ष की साजिश है, ताकि उनके बढ़ते राजनीतिक कद को रोका जा सके.
लेकिन उन्हें 1997 में मुख्यमंत्री का पद छोड़ना
पड़ा था और अपनी जगह उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का
मुख्यमंत्री नियुक्त किया.
हालांकि राबड़ी देवी को राजनीति का कोई अनुभव नहीं
था और आलोचकों ने उन्हें सिर्फ रबड स्टैंप कहा और लालू प्रसाद यादव पर
राज्य को रिमोट कंट्रोल के जरिए चलाने के आरोप लगे.
घटा महत्व
चारा घोटाले ने न सिर्फ 1990 के दशक में देश को
हिला दिया बल्कि इससे लालू प्रसाद यादव की छवि को भी बहुत नुकसान हुआ. उस
वक्त लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय के पैरोकार माने जाते थे.
वर्ष 1997 में जनता दल का विभाजन हुआ और लालू
प्रसाद ने राष्ट्रीय जनता दल के नाम से अपनी अलग पार्टी बनाई. 2005 के
विधानसभा चुनाव में हारने तक राष्ट्रीय जनता दल बिहार में सरकार चलाती रही.
इसी बीच लालू प्रसाद यादव केंद्र की राजनीति में
सक्रिय हो गए और यूपीए की पहली सरकार में उन्हें रेल मंत्री की जिम्मेदारी
मिली. हालांकि इस दौरान बिहार में आरजेडी कमजोर होती गई और मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार और उनकी जेडीयू पार्टी मजबूत होती गई.
2009 के आम चुनावों में लालू प्रसाद यादव की
पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा और यूपीए गठबंधन में आरजेडी का महत्व घट
गया. फिलहाल लोकसभा में उनकी पार्टी के चार सांसद हैं जबकि राज्यसभा में
आरेजेडी के दो सदस्य हैं.
अगले आम चुनावों में लालू प्रसाद यादव अपने खोए
हुए जनाधार को हासिल करने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन चारा घोटाले और
उनके दौर में 'बदहाल' कानून व्यवस्था का हवाला देकर उनके आलोचक उन्हें
घेरने का कोई मौका नहीं गंवाते हैं.
बावजूद इसके वो मीडिया के लिए ऐसी शख्तियत है जिसकी कही हर बात को ख़बर बनाया जा सकता है.