हिटलर हो गई हैं ममता बनर्जी

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‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष मार्केण्डेय काटजू ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर ‘पूरी तरह से तानाशाह, असहिष्णु और मनमौजी होने’ का आरोप लगाया है। ममता बनर्जी से एक रैली के दौरान सवाल पूछने के चलते एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिये जाने को लेकर काटजू ने उनकी कटु आलोचना की है, जबकि उन्होंने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख की कभी सराहना की थी।
काटजू ने कहा है कि शिलादित्य चौधरी की गिरफ्तारी सरकारी तंत्र का खुलेआम दुरूपयोग और संवैधानिक एवं मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। गौरतलब है कि ममता ने एक रैली में शिलादित्य को उस वक्त माओवादी करार दिया था, जब उसने मुख्यमंत्री से यह सवाल पूछ दिया कि वह किसानों की मदद के लिए क्या कदम उठा रही हैं?
काटजू ने आज एक बयान में कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में एक नेता होने की वह हकदार नहीं हैं। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को मुख्यमंत्री के अवैध आदेशों पर अमल करने के खिलाफ आगाह किया। काटजू ने चेतावनी दी कि हिटलर के निर्देश पर काम करने चलते जो हश्र नाजी अपराधियों का हुआ है, वही हाल उनका (प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों) का होगा। इस व्यक्ति की गिरफ्तारी पर काटजू ने हैरानी जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने तानाशाह तरीके से पहले भी बर्ताव किया है।
काटजू ने कहा कि ममता ने एक टीवी कार्यक्रम के दौरान कॉलेज छात्रा तानिया भारद्वाज को माओवादी करार दिया था क्योंकि उसने एक मासूम सा सवाल पूछ लिया था। उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक को भी गिरफ्तार कराया था। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने पूर्व में एक बयान में ममता बनर्जी का समर्थन किया था क्योंकि मुझे लगा था कि किसी को किसी व्यक्ति की शख्सियत में कोई अच्छी चीज देखनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अब मैंने अपना विचार बदल दिया है और ऐसा लगता है कि वह भारत जैसे एक लोकतांत्रिक देश में एक नेता होने की बिल्कुल हकदार नहीं हैं। चूंकि उनका संवैधानिक और नागरिक अधिकारों के प्रति कोई सम्मान नहीं है तथा वह अपने बर्ताव में पूरी तरह से तानाशाह, असहिष्णु और मनमौजी हैं। ’’ काटजू ने प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दी कि गैरकानूनी आदेशों पर अमल करने के चलते उन्हें आपराधिक कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।
उन्होंने बताया, ‘‘नुरेमबर्ग सुनवाई के दौरान नाजी युद्ध अपराधियों ने दलील दी थी कि आदेश तो आदेश होते हैं और वे तो हिटलर के आदेशों का सिर्फ पालन कर रहे थे, लेकिन यह दलील खारिज कर दी गई और इन लोगों को फांसी दे दी गई। पश्चिम बंगाल के अधिकारी यदि ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना चाहते हैं, तो उन्हें नुरेमबर्ग फैसले से सबक सीखना चाहिए।’’