आखिर सरकार अन्ना से इतनी डरती क्यों है?

कुसुम अशोक सुराना
आखिर अन्ना से सरकार इतनी डरती क्यों है? क्या वह आतंकवादी है, विघटनकारी है, साम्प्रदायिक ताकतोंसे मिले हुए है, आत्मघाती है? सरकार की इतनी फट क्यों  रही है? लोकपाल बिल के मौजूदा ढांचे का विरोध कर रहे एक अदनासे अन्ना से ताकतवर (?) सरकार को डर किस बात का है?
क्यों उनपर पुलिस इतनी शर्ते लाद रही है? क्या होता अगर अन्ना जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठ जाते?
ये मनमोहनी सरकार सिर्फ जी हुजूरी कर सकती है, सच का सामना नहीं! अन्ना की सादगी में सच्चाई की ताकत है...देश प्रेम उनकी रगों में दौड़ रहा है और त्याग और समर्पण की बुनियाद पर वह मौजूदा तंत्र को ललकार रहे  है !!  स्वार्थ में  डुबे, देश को निचोड़ कर लूटने वाले कर्ता धर्ता, सब की बैंड बजाने अब आम जनता एक हो रही है क्योंकि अब हद हो गयी है..जनता के कन्धोपर चढ़ कर कुसी पर बैठे भ्रष्टाचारियोंको देश निकाला  देने  का समय आ गया है...अगर प्रधानमंत्री सच्चे है, अपने निर्णय खुद ले सकते है, ताकतवर वर है तो फिर क्यों नहीं आना चाहते लोकपाल के दायरे में? प्रधानमंत्री को तो उदहारण पेश करना चाहिए था अपने अनुयायी के सामने!
अपनी ठंडी आहें और बेबसी से देश तो चल नहीं सकता मनमोहनजी ...सोनियाजी को खुश करके जनता का दिल नहीं न जीत सकते आप! अन्ना का मंतर जंतर- मंतर पर चल गया तो आपकी कुसी की कील कील हिल जाएगी..जनता की बुलंद आवाज आपको सुनाई दे रही है तभी तो आप बहरेपण का नाटक कर अपनी मौत को कल पर धकेल रहे है!! देश खुश था कि एक सरदार प्रधानमंत्री बना लेकिन  कहाँ है देश पर मिटने को  तैयार कौम  की  दिलेरी, वह सरफरोशिकी तमन्ना?
हमारी पुलिस! उसके तो क्या कहने!! इतनी शर्ते किसी  अपराधी, बलात्कारी, देशद्रोही, आतंकवादी, गुंडे के सामने रख देते तो देश का कुछ तो भला होता.. जनता के रक्षक (?) सिर्फ जी हुजूरी कर सकते है, अपने कर्तव्योंका  पालन नहीं!!आप जनता के सेवक हो, जनता के लिए हो, जनता कि गाढ़ी कमाई पर पलते हो और उसी को कटाने के लिए दौते हो? महंगाई के लिए युवाओंका मोर्च हो तो ये लाठियां भांज लेते है, किसनोंपर गोलिया चला लेते है, नींद में सोये आन्दोलनकारियोंपर डंडे बरसते है मगर आतंकवादियों, बलात्कारियों  और गुंडों के सामने दुबक के बिल में चले जाते है..
स्वतंत्रता  का जश्न मानाने चले है..ये कैसी स्वतंत्रता...हमारे ही राज में हमारी ही आवाज का गला घोटा जा रहा है और हम खामोश रहे...
जीतनी आवाज को दबाने कि कोशिश करोगे, जितनी उसे कुचल ने की  चालाकी करोगे, उतनी ही वह ज्यादा ताकत  वर बन कर गूंजेगी..क्योंकि यह आम जनता के सीने में दबा लावा है, बह पड़ेगा ही...फिर मनमोहनी सरकार तो क्या दिग्गी और कपिल जैसे खलनायक भी उसे संभल नहीं पाएंगे !!

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