क्या जनादेश धो डालेगा नेताओ का अपराध
http://tehalkatodayindia.blogspot.com/2011/03/blog-post_2921.html
सात, रेसकोर्स रोड प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निवास है. कुछ सुविज्ञ लोगों को लगता है कि वहाँ पीने के पानी की जाँच करनी चाहिए. उन्हें शक है कि उस पानी में भंग घुल गई है.
इन लोगों को मानना है कि मनमोहन सिंह जैसे ज्ञानी-ध्यानी व्यक्ति बिना कारण इस तरह का बयान नहीं दे सकते जैसा उन्होंने पिछले दिनों दिया है.
उन्होंने कहा है कि सरकार को बचाने के लिए घूसख़ोरी उनकी जानकारी में नहीं थी. फिर उन्होंने कहा कि संसद के चुनाव में जीत से सारा मुद्दा ही ख़त्म हो गया. मानो जनादेश सारे अपराध मिटा देता हो.
इस बयान के बाद लालकृष्ण आडवाणी को लग रहा है कि ये सुझाव उनके बहुत काम आ सकता है. उन पर लोग रथयात्रा करके दंगे करवाने और फिर बाबरी मस्जिद गिरवाने के आरोप लगाते रहे हैं. अब वे कह सकते हैं कि उसके बाद केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में दो-दो बार एनडीए की सरकार बन गई. जनादेश ने साबित कर दिया कि भाजपा निर्दोष थी. साथ में उन्हें, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती आदि सब को जनता ने सही ठहरा दिया है.
पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ठीक कह रहे हैं कि अब लोग तर्क दे सकते हैं कि गुजरात में दो बार की चुनावी जीत के बाद नरेंद्र मोदी को गुजरात के दंगों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. जनता ने उन्हें क्लीन चिट दे दी है.
अब शहाबुद्दीन और पप्पू यादव दोनों मांग कर सकते हैं कि वे जेलों में आते-जाते कितने ही चुनाव जीत चुके हैं. उनको मिले जनादेशों के बाद उन्हें जेलों में रखना ठीक नहीं है. सारे अपराधों के लिए जनता ने उन्हें क्षमा कर दिया है.
डेढ़ सौ के क़रीब लोकसभा सदस्य सोच रहे होंगे कि वे अपने ख़िलाफ़ लगे आपराधिक आरोपों को जनादेश का हवाला देकर ख़त्म करवा सकते हैं. उधर राज्य विधानसभाओं में आपराधिक मुक़दमे झेल रहे सैकड़ों माननीय विधायक प्रधानमंत्री के क़ायल हो गए हैं कि अब वे भी जनादेश के हथियार का उपयोग कर सकते हैं.
सुरेश कलमाड़ी सोच रहे होंगे कि अब जल्दी चुनाव हो जाएँ और वे फिर चुनाव जीत जाएँ तो फिर कह सकें कि जनादेश मिल गया और राष्ट्रमंडल खेलों में घोटाले के आरोपों को जनता ने नकार दिया है. ए राजा को लग रहा है कि प्रधानमंत्री को 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले की जाँच करवाने की ज़रुरत ही नहीं थी. चुनाव करवा लेते और फिर जीत कर बरी हो जाते.
और अब ललित मोदी, हसन अली और शाहिद बलवा भी अपने-अपने लिए एक-एक सीट की तलाश कर रहे होंगे जिससे कि वे जनादेश लेकर आपराधिक मामलों से बरी हो जाएँ.
अब मुश्किल जनता की है जो अपने प्रतिनिधि चुन कर विधानसभाओं और संसद में भेज रही है लेकिन जनप्रतिनिधि दावा कर रहे हैं कि यह उनके आपराधिक मामलों पर जनता का फ़ैसला है.
जनादेश के इस हथियार का उपयोग जनप्रतिनिधि तो ठीक से करना सीख गए हैं पता नहीं जनता कब सीखेगी. अगर सीख नहीं मिली तो पानी में घुली भंग का असर और व्यापक होता जाएगा.
इन लोगों को मानना है कि मनमोहन सिंह जैसे ज्ञानी-ध्यानी व्यक्ति बिना कारण इस तरह का बयान नहीं दे सकते जैसा उन्होंने पिछले दिनों दिया है.
उन्होंने कहा है कि सरकार को बचाने के लिए घूसख़ोरी उनकी जानकारी में नहीं थी. फिर उन्होंने कहा कि संसद के चुनाव में जीत से सारा मुद्दा ही ख़त्म हो गया. मानो जनादेश सारे अपराध मिटा देता हो.
इस बयान के बाद लालकृष्ण आडवाणी को लग रहा है कि ये सुझाव उनके बहुत काम आ सकता है. उन पर लोग रथयात्रा करके दंगे करवाने और फिर बाबरी मस्जिद गिरवाने के आरोप लगाते रहे हैं. अब वे कह सकते हैं कि उसके बाद केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में दो-दो बार एनडीए की सरकार बन गई. जनादेश ने साबित कर दिया कि भाजपा निर्दोष थी. साथ में उन्हें, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती आदि सब को जनता ने सही ठहरा दिया है.
पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ठीक कह रहे हैं कि अब लोग तर्क दे सकते हैं कि गुजरात में दो बार की चुनावी जीत के बाद नरेंद्र मोदी को गुजरात के दंगों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. जनता ने उन्हें क्लीन चिट दे दी है.
अब शहाबुद्दीन और पप्पू यादव दोनों मांग कर सकते हैं कि वे जेलों में आते-जाते कितने ही चुनाव जीत चुके हैं. उनको मिले जनादेशों के बाद उन्हें जेलों में रखना ठीक नहीं है. सारे अपराधों के लिए जनता ने उन्हें क्षमा कर दिया है.
डेढ़ सौ के क़रीब लोकसभा सदस्य सोच रहे होंगे कि वे अपने ख़िलाफ़ लगे आपराधिक आरोपों को जनादेश का हवाला देकर ख़त्म करवा सकते हैं. उधर राज्य विधानसभाओं में आपराधिक मुक़दमे झेल रहे सैकड़ों माननीय विधायक प्रधानमंत्री के क़ायल हो गए हैं कि अब वे भी जनादेश के हथियार का उपयोग कर सकते हैं.
सुरेश कलमाड़ी सोच रहे होंगे कि अब जल्दी चुनाव हो जाएँ और वे फिर चुनाव जीत जाएँ तो फिर कह सकें कि जनादेश मिल गया और राष्ट्रमंडल खेलों में घोटाले के आरोपों को जनता ने नकार दिया है. ए राजा को लग रहा है कि प्रधानमंत्री को 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले की जाँच करवाने की ज़रुरत ही नहीं थी. चुनाव करवा लेते और फिर जीत कर बरी हो जाते.
और अब ललित मोदी, हसन अली और शाहिद बलवा भी अपने-अपने लिए एक-एक सीट की तलाश कर रहे होंगे जिससे कि वे जनादेश लेकर आपराधिक मामलों से बरी हो जाएँ.
अब मुश्किल जनता की है जो अपने प्रतिनिधि चुन कर विधानसभाओं और संसद में भेज रही है लेकिन जनप्रतिनिधि दावा कर रहे हैं कि यह उनके आपराधिक मामलों पर जनता का फ़ैसला है.
जनादेश के इस हथियार का उपयोग जनप्रतिनिधि तो ठीक से करना सीख गए हैं पता नहीं जनता कब सीखेगी. अगर सीख नहीं मिली तो पानी में घुली भंग का असर और व्यापक होता जाएगा.