अलीगढ़ की आग से तपी यूपी की ज़मीन, राज्य में कई स्थानों पर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे हैं किसान आंदोलन
http://tehalkatodayindia.blogspot.com/2010/08/blog-post_7741.html
लखनऊ:उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जमीन अधिग्रहण के विरोध की जो चिंगारी उठी थी, उसने पूरे सूबे को अपनी चपेट में ले लिया है। अलीगढ़, मथुरा के बाद आगरा और मेरठ समेत आधा दर्जन जिलों में किसान निजी हाथों में अपनी जमीन नहीं देने पर अड़ गए हैं।
दिलचस्प है कि विरोध की यह चिंगारी महीनों से सुलग रही थी। लेकिन अलीगढ़ में आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस गोलीबारी ने इसे भड़काने का काम किया। मेरठ में शताब्दीनगर परियोजना के लिए विकास प्राधिकरण के प्रयासों में किसान पलीता लगा रहे हैं।
लखनऊ में भी किसान गोमतीनगर विस्तार योजना के लिए जमीन अधिग्रहण के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। अंबेडकर नगर में 9 गांवों के किसान एनटीपीसी संयंत्र के विस्तार को जमीन देने के लिए तैयार नहीं हैं।
इसी तरह उन्नाव में सेज के लिए जमीन अधिग्रहण पर प्रशासन और किसानों में खींचतान चल रही है। कन्नौज में कचरा निस्तारण संयंत्र के लिए किसानों से 250 बीघा जमीन ली गई है, जिसके खिलाफ किसान जिलाधिकारी कार्यालय में धरना दे रहे हैं।
महोबा में अर्जुन सहायक परियोजना के लिए 50 से ज्यादा गांवों के 2,000 से अधिक किसानों की जमीन ली जा रही है। यहां भी किसान मुआवजा कम होने की शिकायत कर रहे हैं।
यह आलम तब है, जब सरकार ने अपनी मनपसंद गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण शुरू भी नहीं किया है। इसके लिए सर्वेक्षण शुरू होते ही फर्रुखाबाद, कन्नौज, रायबरेली, हरदोई और उन्नाव आदि में किसानों की त्योरियां चढ़ गई थीं।
फतेहपुर में तो सर्वेक्षण करने गए कर्मचारियों की पिटाई भी कर दी गई थी। यह देखकर राज्य सरकार सकते में है और ताजा विवाद को फौरन खत्म करने की कोशिश कर रही है।
इसी फिक्र में उसने सूबे के सबसे आला अधिकारी और कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह को किसानों से बात करने भेजा, लेकिन यह तरकीब भी रंग लाती नहीं दिख रही है। अलीगढ़ और आगरा में किसान सरकार के समझौते को ठुकरा चुके हैं, जिसका फायदा विपक्षी दल भी उठा रहे हैं
दिलचस्प है कि विरोध की यह चिंगारी महीनों से सुलग रही थी। लेकिन अलीगढ़ में आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस गोलीबारी ने इसे भड़काने का काम किया। मेरठ में शताब्दीनगर परियोजना के लिए विकास प्राधिकरण के प्रयासों में किसान पलीता लगा रहे हैं।
लखनऊ में भी किसान गोमतीनगर विस्तार योजना के लिए जमीन अधिग्रहण के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। अंबेडकर नगर में 9 गांवों के किसान एनटीपीसी संयंत्र के विस्तार को जमीन देने के लिए तैयार नहीं हैं।
इसी तरह उन्नाव में सेज के लिए जमीन अधिग्रहण पर प्रशासन और किसानों में खींचतान चल रही है। कन्नौज में कचरा निस्तारण संयंत्र के लिए किसानों से 250 बीघा जमीन ली गई है, जिसके खिलाफ किसान जिलाधिकारी कार्यालय में धरना दे रहे हैं।
महोबा में अर्जुन सहायक परियोजना के लिए 50 से ज्यादा गांवों के 2,000 से अधिक किसानों की जमीन ली जा रही है। यहां भी किसान मुआवजा कम होने की शिकायत कर रहे हैं।
यह आलम तब है, जब सरकार ने अपनी मनपसंद गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण शुरू भी नहीं किया है। इसके लिए सर्वेक्षण शुरू होते ही फर्रुखाबाद, कन्नौज, रायबरेली, हरदोई और उन्नाव आदि में किसानों की त्योरियां चढ़ गई थीं।
फतेहपुर में तो सर्वेक्षण करने गए कर्मचारियों की पिटाई भी कर दी गई थी। यह देखकर राज्य सरकार सकते में है और ताजा विवाद को फौरन खत्म करने की कोशिश कर रही है।
इसी फिक्र में उसने सूबे के सबसे आला अधिकारी और कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह को किसानों से बात करने भेजा, लेकिन यह तरकीब भी रंग लाती नहीं दिख रही है। अलीगढ़ और आगरा में किसान सरकार के समझौते को ठुकरा चुके हैं, जिसका फायदा विपक्षी दल भी उठा रहे हैं