कूड़े में मायावती
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दिनेश शाक्य
यह माया राज है। वह माया जिसके खौफ से अधिकारियों को नींद नहीं आती थी। ख्वाबों में मुख्यमंत्री की दहशत नींद उड़ा देती थी, परंतु आज वहीं मुख्यमंत्री मायावती के होर्डिंग्स कूढ़े के ढेरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। गंदगी में जीने वाले जानवर इन होर्डिंग्स के साथ अठखेलियां कर रहे हैं। हद तो यह है कि सूबे के मुखिया की इस बेकदरी से प्रशासन पूरी तरह से बेखबर है।
अधिकारियों को नहीं है होश कि आखिर यह इतनी बड़ी संख्या में सूबे की मुखिया की होर्डिंग्स कूढ़ेघर में कैसे पहुंचे। इतना ही नहीं जब हम कवरेज करने पहुंचे तो किसी प्रकार से पुलिस को भनक लग गई। मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों ने होर्डिंग्स तो हटवा दिए लेकिन अभी तक यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर राजा की इस बेकदरी के लिए जिम्मेदार कौन है? घंटों कूढ़ेघर की शोभा बढ़ाने वाली मुख्यमंत्री की इन तस्वीरों की जानकारी आखिर प्रशासन को क्यों नहीं हो सकी। क्या प्रशासन का तंत्र इस कदर कमजोर है कि उसे अपने आका का ही होश नहीं रह गया है।
बुधवार को शाम तकरीबन छह बजे जिसने भी यह नजारा देखा वह अवाक रह गया। प्रशासनिक लापरवाही की ऐसी तस्वीर जो लोगों की आंखों ने कभी नहीं देखी थी। आखिर नजारा ही ऐसा था। जिस मुख्यमंत्री के पुतले फूंकने पर राज्य में सैकड़ो लोगों ने जेल की हवा खाई वहीं मुख्यमंत्री मायावती की फोटो लगे विशाल होर्डिंग्स कूढ़ेघर में पड़े थे। इन होर्डिंग्स में जहां सूबे की मुखिया की तस्वीरें साफ नजर आ रहीं थीं, उन पर सूअर जैसे गंदे जानवर अपना भोजन तलाश रहे थे तो कुछ सूअर इन तस्वीरों को रौंद रहे थे। वह तो जानवर थे, उन्हें नहीं गुमां था कि वह क्या कर रहे थे। मगर सवाल यह था कि आखिर यह होर्डिंग्स यहां तक पहुंचे कैसे?
चार-पांच की संख्या में यह विशालकाय होर्डिंग्स पर लगी मुख्यमंत्री की तस्वीर की भनक न तो खुफिया तंत्र को थी और न ही प्रशासन को। जब यह खबर लगी और वह कवरेज करने पहुंचा इसके बाद जाकर कहीं कोतवाली पुलिस को भनक लगी। कोतवाली पुलिस ने आनन-फानन में इन होर्डिंग्स को तो हटवा दिया, परंतु इसका जबाब कोतवाली पुलिस के पास भी नहीं है कि इन होर्डिंग्स को यहां तक पहुंचाने वालों के विरुद्ध वह क्या कर रही है। वह कौन लोग हैं जो एक विशाल जनसमुदाय की आस्था की प्रतीक मायावती की तस्वीरों का यूं अपमान कर रहे हैं? सवाल यह है कि पल-पल पर होर्डिंग्स लगा कर अपनी नेता की नीतियों को सार्वजनिक करने वाले नेता कहां चले गए कि जिन्हें होर्डिंग्स लगाने के बाद यह होश नहीं रहता है कि उनके द्वारा लगवाए गए होर्डिंग्स कहीं उनके अपमान का पर्याय तो नहीं हो रहे। प्रशासनिक मशीनरी क्या इस कदर लाचार हो गई है कि वह सूबे की मुखिया की इस बेकदरी से बेखबर रही। सवाल तमाम है, देखना होगा कि इस मामले में आगे चलकर प्रशासन क्या कार्रवाई करता है