700 करोड़ की लागत से 'माया मंदिर

http://tehalkatodayindia.blogspot.com/2011/10/700.html
माया का 700 करोड़ की लागत से 'माया मंदिर' तैयार है। मंदिर इसलिए क्योंकि माया ने अपनी ही कई मूर्तियां लगवा डाली हैं। महाकाय फव्वारा और मुख्य गुम्बद बाहर से साफ नजर आते हैं। अच्छी बात है कि माया को ऐसा सूझा कि उन्हें ये बनाना चाहिए लेकिन सवाल ये कि 700 करोड़ की रकम कहां से आई है। क्या ये माया की निजी संपत्ति थी या फिर यूपी के आम आदमी की गाढ़ी कमाई का हिस्सा। माया जब अपने पार्कों पर इतना खर्च कर रही हैं तो जाहिर है कि यूपी में विकास का स्तर काफी अच्छा होगा। क्या सचमुच ऐसा है?बीते कई दिनों से मैं यूपी इलेक्शन के लिए तैयार की गई माइक्रोसाइट पर काम कर रहा हूं। प्रदेशभर की जानकारी जुटाने के लिए मैंने हर जिले के अपने सहयोगी पत्रकारों से दो खास बिंदु पूछे कि उनके शहर का विकास और उसकी समस्याएं क्या हैं। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि तकरीबन सभी ने एक स्वर में सड़क, बिजली, शिक्षा जैसी आधारभूत चीजों के न होने की बात कही है। और कई ऐसे जिले भी मिले जहां जो व्यापार था वो भी खत्म हो गया। क्योंकि बिजली, सुरक्षा, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं।
बड़े शहरों को तो लोग उंगलियों पर गिन लेते हैं लेकिन भूल जाते हैं प्रदेश की आत्मा अधिकांश छोटे शहर हैं और ये विकास के लिए छटपटा रहे हैं। उदाहरण के लिए आप फिरोजाबाद को लीजिए यहां उद्योग का पिछले कई सालों से स्तर बहुत अच्छा नहीं है। यहां चूड़ी और ग्लास के कुल 410 कारखाने थे, जिसमें से 227 कारखाने बंद हो गए हैं फिलहाल यहां मात्र 183 कारखाने चालू हैं...है किसी को खयाल! अब वाराणसी का हाल पढ़िए। यातायात की समस्या की वजह से यहां के प्रमुख उद्योग धंधे काफी हद तक प्रभावित हुए हैं। कभी वाराणसी का प्रमुख उद्योग साड़ी था लेकिन अब ये उद्योग बर्बादी के कगार पर आ गया है। यहां की बनारसी साड़ी उद्योग के ऊपर सरकार की गलत नीतियों के वजह से ग्रहण लग चुका है। करघों की जगह पावरलूम ने जगह ले ली है। जिसकी वजह से आधे कारीगर बेरोजगार हो गए। शहर में अब बस नाम मात्र के साड़ी उद्योग से जुड़े लोग रह गए हैं। सरकार की नीतियों और चाइना से आए रेशम की वजह से ये उद्योग गुमनामी के अंधेरे में चला जा रहा है। आजमगढ़ को ही लीजिए, यहां उद्योग धंधे शून्य की स्थिति में हैं। कभी यहां के बुनकरों द्वारा बनारसी साड़ियों का कारोबार विश्व विख्यात था लेकिन सरकार कि अनदेखी से यहां के बुनकर भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। निजामाबाद क्षेत्र में विश्व विख्यात काली मिट्टी कि कलाकृतियों का कारोबार सरकारी मदद के आभाव में दम तोड़ रहा है। कलाकार यहां से पलायन कर रहे हैं।
कम सुनाई देने वाले गोरखपुर जिले में पहले बहुत सारी मिलें थीं लेकिन अब चीनी मिल, खाद कारखाना, जूट मिल और बहुत सी मिलें बंद हो गईं जिससे लोगों को दूसरे शहरों में जाना पड़ रहा है। पहले यहां चीनी मिल होने से किसानों के साथ साथ लोगों को रोजगार की भी खुशी थी भी लेकिन उसके बंद होने से किसान-मजदूर दोनों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। वहीं इटावा में चार बड़ी परियोजनाएं जिन पर अभी तक पंद्रह अरब की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई है, वो सभी सियासी उपेक्षाओं की शिकार होकर धूल चाट रही हैं। 12 करोड़ की लागत से बनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय सैंफई स्टेडियम के शुरू होने से पहल धीरे-धीरे बदहाल हो रहा है। इतना ही नहीं सैफई हवाई पट्टी भी पूरी तरह उपेक्षाओं की शिकार हो चुकी है। यहां सिर्फ जानवर ही विचरण करते नज़र आते है। औद्योगिक विकास को लेकर यूपी के कई जिलों में कमोवेश यही हाल है।
स्वयं प्रदेश की राजधानी लखनऊ जहां माया ने करोड़ों की लागत से कई पार्क खड़े कर डाले हैं वहां भी हालात अच्छे नहीं है। ट्रैफिक, प्रदूषण, ड्रेनेज सिस्टम, बिजली की समस्या यहां विकराल है। प्रदेश की राजधानी होने के नाते शहर के प्रमुख इलाकों में बिजली जरूर रहती है लेकिन आज भी शहर के बहुत से इलाके अंधरे में डूबे रहते हैं। पुराने लखनऊ और ग्रामीण इलाकों में बिजली कि बहुत बड़ी समस्या है।
हमारा दूसरा सवाल अपराध को लेकर था। हमने पूछा कि आपके शहर में अपराध का क्या स्तर है तो हमें जवाब मिला कि अपराध कम नहीं हुआ है। कई शहरों में हत्या, बलात्कार, चोरी जैसे वारदातें तकरीबन हर दिन की सी बात हैं तो बदला क्या है। आंकड़े गवाह हैं कि यूपी को ताबड़तोड़ अपराधों से जूझता अति पिछड़ा प्रदेश कहा जाए तो अतिशयोक्त न होगी....
फतेहपुर-साल 2009 में फतेहपुर जिले में डकैती के 4, लूट के 23, नकबजनी के 41, चोरी के 124 , हत्या के 81, हत्या के प्रयास के 40, गैर इरादतन हत्या के 81, बलवा के 16, गंभीर चोटों के 320 , फिरौती और अपहरण के 3 , बलात्कार के 39 , छेड़छाड़ के 87 और अन्य अपराध के 161 मामले दर्ज हुए। साल 2010 में यहां अलग-अलग अपराध के 831 मामले दर्ज हैं।
झांसी-यहां भी अपराधियों को बोलबाला है। पुलिस कागजों में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार यह बात साफ है कि बीते 6 माह में झांसी जिले के अंदर अपराधियों ने 781 छोटी बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया है। जबकि 39 हत्याएं अपराधियों के द्वारा की गई है। इस 6 माह के आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि झांसी जिले में अपराध सौ प्रतिशत से भी ऊपर रहा है।
फिरोजाबाद-फिरोजाबाद जिला भी क्राइम के नजरिये से बहुत खराब है। साल 2010 में फिरोजाबाद में लूट के 19 मामले, नकबजनी 34 मामले, चोरी के 193 मामले, कुल चोरी के 248 मामले, हत्या के 98 मामले, हत्या के प्रयास के 60 मामले, बलवा के 54 मामले, गंभीर चोट के 226 मामले, फिरौती और अपहरण का एक मामला, अपहरण के अन्य 91 मामले, दहेज हत्या के 52 मामले, बलात्कार के 15 मामले दर्ज है। कुल मिलाकर साल 2010 में यहां अलग-अलग अपराध के 2370 मामले दर्ज हैं। वहीं जनवरी 2011 से जून 2011 तक यहां अलग-अलग अपराध के 1324 मामले दर्ज हुए हैं।
मुजफ्फरनगर-मुजफ्फरनगर को क्राइम कैपिटल के उपनाम से भी जाना जाता है। जिसकी मुख्य वजह है यहां पर साल दर साल लगभग 250 से 300 हत्याओं का होना और साथ ही साथ 100 से 150 अज्ञात शवों का मिलना, इसके अलावा लूट, डकैती जैसी घटनाएं यहां आम बात है। साथ ही साथ इस जिले में अपहरण उद्योग भी काफी फल फूल रहा था। आए दिन अपहरण की वारदात होना भी यहां आम बात थी, हालांकि पिछले दो-तीन सालों से पुलिस ने अपहरण की वारदातों पर लगाम जरूर लगाई है। अगर औसतन बात करें तो इस जिले में प्रतिदिन एक हत्या की घटना होती है।
वाराणसी-अपराध के क्षेत्र में भी बनारस का एक अलग स्थान है। बनारस में कई मफियाओं के गैंग आज भी अपनी वसूली बेखौफ होकर करते हैं भले ही हर गैंग के माफिया जेल में क्यों न बंद हो। पुलिस रिकॉर्ड में अपराध का ग्राफ भले ही दुरुस्त हो लेकिन माफिया गिरी, कब्जागिरी, सरकारी विभागों की ठेकेदारी सहित हर जगह इन मफियाओं की ही चलती रहती है। इन्हीं मफियाओं की वजह से यहां के कुछ बड़े व्यापारी अपना उद्योग अब यहां फैलाने की जगह समेट रहे हैं।
आगरा- बाकी दुनिया आगरा को ताजमहल के लिए जानती है लेकिन यूपी में इसकी एक पहचान और है वो है ताबड़तोड़ अपराध की जमीन होने की। 2010 में आगरा जिले में लूट के 26 मामले, हत्या के 52 मामले, बलात्कार के 7 मामले, चोरी के 702 मामले, महिला उत्पीड़न के 166 मामले और दहेज हत्या के 31 मामले दर्ज हुए। वहीं जनवरी 2011 से जून 2011 तक यहां पर लूट के 75 मामले, हत्या के 82 मामले, बलात्कार के 30 मामले, चोरी के 1449 मामले, डकैती के 5 मामले, महिला उत्पीड़न के 146 मामले, दहेज हत्या के 36 मामले दर्ज हुए।
आखिर क्या बदला है यूपी में। पिछले यूपी चुनावों के दौरान बिग बी ने मुलायम सरकार के समर्थन में नारा लगाया था- यूपी में दम है, यहां अपराध बहुत कम है...। जनता ने उन्हें जवाब दिया। ऊपर दिए कुछ जिलों के आंकड़े बता रहे हैं कि हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया है तो फिर उत्सव कैसा? इसका जवाब माया और उनकी पार्टी को देना होगा।
2011 तक पार्कों में माया ने करोड़ों खर्च कर दलित उत्थान का नारा लगाया है। देखना होगा कि यूपी वाले इसे कितनी गंभीरता से लेते हैं। सब जानना चाहते हैं कि पार्क किसके लिए हैं, इससे किसका महिमामंडन होगा? जिस यूपी वाले को आधारभूत सुविधाएं तक न मिल न रही हों उसके लिए माया के ये पार्क एक भद्दा मजाक से कम नहीं हैं।
बड़े शहरों को तो लोग उंगलियों पर गिन लेते हैं लेकिन भूल जाते हैं प्रदेश की आत्मा अधिकांश छोटे शहर हैं और ये विकास के लिए छटपटा रहे हैं। उदाहरण के लिए आप फिरोजाबाद को लीजिए यहां उद्योग का पिछले कई सालों से स्तर बहुत अच्छा नहीं है। यहां चूड़ी और ग्लास के कुल 410 कारखाने थे, जिसमें से 227 कारखाने बंद हो गए हैं फिलहाल यहां मात्र 183 कारखाने चालू हैं...है किसी को खयाल! अब वाराणसी का हाल पढ़िए। यातायात की समस्या की वजह से यहां के प्रमुख उद्योग धंधे काफी हद तक प्रभावित हुए हैं। कभी वाराणसी का प्रमुख उद्योग साड़ी था लेकिन अब ये उद्योग बर्बादी के कगार पर आ गया है। यहां की बनारसी साड़ी उद्योग के ऊपर सरकार की गलत नीतियों के वजह से ग्रहण लग चुका है। करघों की जगह पावरलूम ने जगह ले ली है। जिसकी वजह से आधे कारीगर बेरोजगार हो गए। शहर में अब बस नाम मात्र के साड़ी उद्योग से जुड़े लोग रह गए हैं। सरकार की नीतियों और चाइना से आए रेशम की वजह से ये उद्योग गुमनामी के अंधेरे में चला जा रहा है। आजमगढ़ को ही लीजिए, यहां उद्योग धंधे शून्य की स्थिति में हैं। कभी यहां के बुनकरों द्वारा बनारसी साड़ियों का कारोबार विश्व विख्यात था लेकिन सरकार कि अनदेखी से यहां के बुनकर भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। निजामाबाद क्षेत्र में विश्व विख्यात काली मिट्टी कि कलाकृतियों का कारोबार सरकारी मदद के आभाव में दम तोड़ रहा है। कलाकार यहां से पलायन कर रहे हैं।
कम सुनाई देने वाले गोरखपुर जिले में पहले बहुत सारी मिलें थीं लेकिन अब चीनी मिल, खाद कारखाना, जूट मिल और बहुत सी मिलें बंद हो गईं जिससे लोगों को दूसरे शहरों में जाना पड़ रहा है। पहले यहां चीनी मिल होने से किसानों के साथ साथ लोगों को रोजगार की भी खुशी थी भी लेकिन उसके बंद होने से किसान-मजदूर दोनों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। वहीं इटावा में चार बड़ी परियोजनाएं जिन पर अभी तक पंद्रह अरब की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई है, वो सभी सियासी उपेक्षाओं की शिकार होकर धूल चाट रही हैं। 12 करोड़ की लागत से बनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय सैंफई स्टेडियम के शुरू होने से पहल धीरे-धीरे बदहाल हो रहा है। इतना ही नहीं सैफई हवाई पट्टी भी पूरी तरह उपेक्षाओं की शिकार हो चुकी है। यहां सिर्फ जानवर ही विचरण करते नज़र आते है। औद्योगिक विकास को लेकर यूपी के कई जिलों में कमोवेश यही हाल है।
स्वयं प्रदेश की राजधानी लखनऊ जहां माया ने करोड़ों की लागत से कई पार्क खड़े कर डाले हैं वहां भी हालात अच्छे नहीं है। ट्रैफिक, प्रदूषण, ड्रेनेज सिस्टम, बिजली की समस्या यहां विकराल है। प्रदेश की राजधानी होने के नाते शहर के प्रमुख इलाकों में बिजली जरूर रहती है लेकिन आज भी शहर के बहुत से इलाके अंधरे में डूबे रहते हैं। पुराने लखनऊ और ग्रामीण इलाकों में बिजली कि बहुत बड़ी समस्या है।
हमारा दूसरा सवाल अपराध को लेकर था। हमने पूछा कि आपके शहर में अपराध का क्या स्तर है तो हमें जवाब मिला कि अपराध कम नहीं हुआ है। कई शहरों में हत्या, बलात्कार, चोरी जैसे वारदातें तकरीबन हर दिन की सी बात हैं तो बदला क्या है। आंकड़े गवाह हैं कि यूपी को ताबड़तोड़ अपराधों से जूझता अति पिछड़ा प्रदेश कहा जाए तो अतिशयोक्त न होगी....
फतेहपुर-साल 2009 में फतेहपुर जिले में डकैती के 4, लूट के 23, नकबजनी के 41, चोरी के 124 , हत्या के 81, हत्या के प्रयास के 40, गैर इरादतन हत्या के 81, बलवा के 16, गंभीर चोटों के 320 , फिरौती और अपहरण के 3 , बलात्कार के 39 , छेड़छाड़ के 87 और अन्य अपराध के 161 मामले दर्ज हुए। साल 2010 में यहां अलग-अलग अपराध के 831 मामले दर्ज हैं।
झांसी-यहां भी अपराधियों को बोलबाला है। पुलिस कागजों में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार यह बात साफ है कि बीते 6 माह में झांसी जिले के अंदर अपराधियों ने 781 छोटी बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया है। जबकि 39 हत्याएं अपराधियों के द्वारा की गई है। इस 6 माह के आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि झांसी जिले में अपराध सौ प्रतिशत से भी ऊपर रहा है।
फिरोजाबाद-फिरोजाबाद जिला भी क्राइम के नजरिये से बहुत खराब है। साल 2010 में फिरोजाबाद में लूट के 19 मामले, नकबजनी 34 मामले, चोरी के 193 मामले, कुल चोरी के 248 मामले, हत्या के 98 मामले, हत्या के प्रयास के 60 मामले, बलवा के 54 मामले, गंभीर चोट के 226 मामले, फिरौती और अपहरण का एक मामला, अपहरण के अन्य 91 मामले, दहेज हत्या के 52 मामले, बलात्कार के 15 मामले दर्ज है। कुल मिलाकर साल 2010 में यहां अलग-अलग अपराध के 2370 मामले दर्ज हैं। वहीं जनवरी 2011 से जून 2011 तक यहां अलग-अलग अपराध के 1324 मामले दर्ज हुए हैं।
मुजफ्फरनगर-मुजफ्फरनगर को क्राइम कैपिटल के उपनाम से भी जाना जाता है। जिसकी मुख्य वजह है यहां पर साल दर साल लगभग 250 से 300 हत्याओं का होना और साथ ही साथ 100 से 150 अज्ञात शवों का मिलना, इसके अलावा लूट, डकैती जैसी घटनाएं यहां आम बात है। साथ ही साथ इस जिले में अपहरण उद्योग भी काफी फल फूल रहा था। आए दिन अपहरण की वारदात होना भी यहां आम बात थी, हालांकि पिछले दो-तीन सालों से पुलिस ने अपहरण की वारदातों पर लगाम जरूर लगाई है। अगर औसतन बात करें तो इस जिले में प्रतिदिन एक हत्या की घटना होती है।
वाराणसी-अपराध के क्षेत्र में भी बनारस का एक अलग स्थान है। बनारस में कई मफियाओं के गैंग आज भी अपनी वसूली बेखौफ होकर करते हैं भले ही हर गैंग के माफिया जेल में क्यों न बंद हो। पुलिस रिकॉर्ड में अपराध का ग्राफ भले ही दुरुस्त हो लेकिन माफिया गिरी, कब्जागिरी, सरकारी विभागों की ठेकेदारी सहित हर जगह इन मफियाओं की ही चलती रहती है। इन्हीं मफियाओं की वजह से यहां के कुछ बड़े व्यापारी अपना उद्योग अब यहां फैलाने की जगह समेट रहे हैं।
आगरा- बाकी दुनिया आगरा को ताजमहल के लिए जानती है लेकिन यूपी में इसकी एक पहचान और है वो है ताबड़तोड़ अपराध की जमीन होने की। 2010 में आगरा जिले में लूट के 26 मामले, हत्या के 52 मामले, बलात्कार के 7 मामले, चोरी के 702 मामले, महिला उत्पीड़न के 166 मामले और दहेज हत्या के 31 मामले दर्ज हुए। वहीं जनवरी 2011 से जून 2011 तक यहां पर लूट के 75 मामले, हत्या के 82 मामले, बलात्कार के 30 मामले, चोरी के 1449 मामले, डकैती के 5 मामले, महिला उत्पीड़न के 146 मामले, दहेज हत्या के 36 मामले दर्ज हुए।
आखिर क्या बदला है यूपी में। पिछले यूपी चुनावों के दौरान बिग बी ने मुलायम सरकार के समर्थन में नारा लगाया था- यूपी में दम है, यहां अपराध बहुत कम है...। जनता ने उन्हें जवाब दिया। ऊपर दिए कुछ जिलों के आंकड़े बता रहे हैं कि हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया है तो फिर उत्सव कैसा? इसका जवाब माया और उनकी पार्टी को देना होगा।
2011 तक पार्कों में माया ने करोड़ों खर्च कर दलित उत्थान का नारा लगाया है। देखना होगा कि यूपी वाले इसे कितनी गंभीरता से लेते हैं। सब जानना चाहते हैं कि पार्क किसके लिए हैं, इससे किसका महिमामंडन होगा? जिस यूपी वाले को आधारभूत सुविधाएं तक न मिल न रही हों उसके लिए माया के ये पार्क एक भद्दा मजाक से कम नहीं हैं।