दुनिया भर में गहरा होगा खाद्यान्न संकट


न्यूयॉर्क। ग्लोबल वार्मिग के कारण तेजी से बदल रही जलवायु परिस्थिति दुनिया को मुश्किल में डालने वाली है। जलवायु परिवर्तन का सीधा असर फसलों पर पड़ रहा है, जिस कारण उपज कम होती जा रही है। अमेरिका के स्टेंडफोर्ड विंश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय और अमेरिका के नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च के ताजा अध्ययन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन को साइंस टुडे पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
अध्ययन में पाया गया कि पिछले कई दशक से ग्लोबल वार्मिंग के कारण विश्व भर में मुख्य फसलों की उपज में कमी आई है। हालांकि खेती के उन्नत तरीकों ओर शोध ने फसलों की उपज को बढ़ाने में काफी सहायता की है, फिर भी 1980 से विश्व भर में गेहूं की पैदावार में 5.5 प्रतिशत की कमी और मक्के की उपज में 3.8 प्रतिशत की कमी आई है। हालांकि चावल और सोयाबीन की उपज में कमी दर्ज नहीं की गई है। फिलहाल इसके व्यापक प्रभाव के बारे में साफ नहीं है।
शोध में कहा गया है कि किसानों में भी उपज में गिरावट के प्रति चिंता दिखाई नहीं दे रही है। शोधकर्ताओं में से एक स्टेंफोर्ड विश्वविद्यालय के डेविड लोबेल ने पत्रिका से कहा, 'गेहूं और मक्के के मूल्य में छह प्रतिशत की वृद्धि हुई है। तापमान में बढ़ोतरी के कारण उत्पादन में गिरावट सिर्फ बढ़ने ही वाली है।' मक्के की स्थिति तो यह है कि अपै्रल 2010 से अपै्रल 2011 के बीच उसकी कीमत दोगुनी हो गई है।
अध्ययन के मुताबिक पिछले तीन दशक में फसलों की किस्में बढ़ी हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने पैदावार को काफी प्रभावित किया है। ग्लोबल वार्मिंग पर हो रही बहस बिल्कुल सही है। इसका असर साफ दिख रहा है। फिलहाल इस बात पर बहस होनी चाहिए कि हम इससे किस प्रकार से निपटेंगे। तापमान में बढ़ोतरी के बावजूद खेती के आधारभूत ढांचे में सुधार कर विकसित और गरीब देशों के बीच की खाई को पाटा जा सकता है।

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