अन्ना का अहिंसक आमरण अनशन अस्त्र
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बाल ब्रह्मचारी समाजसेवी अन्ना हजारे ने 'देशद्रोहियों' के खिलाफ अपने आमरण अनशन आंदोलन को जंतर-मंतर चौक पर अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। गांधीवादी समाजसेवी ने अपने आमरण अनशन से पूर्व बापू की समाधि पर जाकर अपने लिए अहिंसा के अस्त्र का उपयोग करने की शक्ति और देश के शासकों को सद्बुद्धि प्रदान करने की गांधी जी से प्रार्थना की।
इस दौरान गैर जरूरी तौर पर कुछ चैनलों ने सरकार के पक्ष का परोक्ष प्रचार करते हुए अन्ना से दबाव की राजनीति त्यागने और अपने निरीह प्राणों को संकट में न डालने की सलाहनुमा प्रतिक्रिया भी दे डाली। उनका आशय शायद बातचीत के बहाने अन्ना के अनशन के गुब्बारे की हवा निकालना था।
बहरहाल, अन्ना हजारे ने उनकी बातों पर कान नहीं दिया और अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम पर अडिग रहे। आमरण अनशन रूपी उनके इस अहिंसक आंदोलन को देश भर से नैतिक समर्थन मिल रहा है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सूत्रधार अरविंद केजरीवाल और पूर्व आईपीएस किरण बेदी भी उनके इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में उनको सहयोग दे रहे हैं। सामाजिक मुद्दों के प्रति सक्रिय रूप से सहयोगी रुख अपनाने वाले स्वामी अग्निवेश की जंतर मंतर पर मौजूदगी अन्ना हजारे को नैतिक बल प्रदान कर रही है।
अब जरा देखें कि अन्ना हजारे ऐसी कौन सी नायाब मांग कर रहे हैं जिसे पूरा करने में तथाकथित ईमानदार प्रधानमंत्री और उनके गिरोह को तकलीफ हो रही है। मेरी राय में अन्ना देश के शासकों से (जिन्हें उन्होंने राजघाट पर देशद्रोही की उपाधि से विभूषित किया है) वह प्राण वायु मांग रहे हैं जिसे आम आदमी भ्रष्टाचार कहता है। अर्थात वह देश को भ्रष्टाचार की दीमक से मुक्त कराने के लिए 'जन लोकपाल बिल' नामक कीटनाशक के निर्माण की मांग कर रहे हैं। अब यह अन्ना की नाइंसाफी नहीं तो और क्या है कि वे मनमोहन सिंह को 'नीलकंठ' बन जाने के लिए विवश करने पर आमादा हैं।सरकार फेस सेविंग के तौर पर यह प्रचारित कर रही है कि लोकपाल बिल के मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए मंत्रियों का एक समूह गठित कर दिया गया है। अन्ना चाहें तो बेईमानों के इस समूह को अपनी याचिका दे सकते हैं। कमोबेश यही स्टैंड कांग्रेस का भी है जिसके प्रवक्ता मनीष तिवारी अन्ना को यह सलाह देते दिखाई दिए कि वे अपनी परेशानी को सरकार के सामने रखें। सरकार उस पर सहानुभूति दिखाते हुए विचार करेगी और अगर जरूरी हुआ तो लोकपाल बिल में अन्ना की कुछ बातों को भी शामिल कर लेगी।
राजनीतिक आपदा प्रबंधन ग्रुप समग्र रूप से सक्रिय हो गया है और उसने अपने तार ब्रिटिश हाई कमीशन ओर अमेरिकन एम्बेसी से जोड़ लिए हैं। आदत के अनुसार इन लोगों ने विदेशियों के सामने यह दुखड़ा रोना एक बार फिर शुरू कर दिया है कि माई बाप! जिस गांधी की नसीहतों से आजिज आकर हमने उसे 62 साल पहले राजघाट पर उसके सारे उसूलों के साथ दफन कर दिया था, आज उसी का जिन्न न मालूम कौन सी दरार से छोटे गांधी के रूप में बाहर आ गया है और देश के लोगों को अपनी ईमानदारी और अहिंसा की लाठी से हमारे खिलाफ हांक रहा है। हे दुनिया के दारोगा! कुछ ऐसा उपाय कीजिए कि सदाचार और नैतिकता की बीमारी से ग्रस्त इस आंदोलनकारी से हम जल्द से जल्द निजात पा जाएं।
सहृदय पाठकों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना आवश्यक लग रहा है कि अन्ना हजारे ने देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने वाले जिस जन लोकपाल बिल को संसद द्वारा पारित किए जाने के लिए आमरण अनशन शुरू किया है उसके प्रमुख प्रावधान देश के संविधान में दर्ज डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स (नीति निर्देशक सिद्धांत) पर आधारित हैं। यह बात दीगर है कि उन सिद्धांतों पर नेहरू से लेकर वर्तमान सरकार तक किसी ने भी गौर करने और उन्हें जरूरी मान कर उन पर अमल करने की जहमत नहीं उठाई।
आम आदमी की दशा को दयनीय बनाने वाले और कुछ नेताओं, नौकरशाहों और व्यापारियों को लाभ पहुंचाने वाले भ्रष्टाचार को मिटाने की मांग करना अगर देश को राजनीतिक रूप से अस्थिर करना है तो ऐसी मानसिकता वाले शासकों और उसके समर्थकों को मेरा दूर से ही सलाम है। सरकार के कुछ पक्षपोषकों ने एक बेशर्म दलील यह दी है कि चूंकि संसद और विधानसभाओं में पारित होने वाले विधेयक जनप्रतिनिधियों द्वारा तैयार किए जाते हैं, इसलिए सरकार द्वारा प्रस्तुत लोकपाल बिल को तकनीकी तौर पर जन लोकपाल बिल ही कहा जाएगा। इस आधार पर अन्ना की मांग फालतू और गैरवाजिब है।
इस देश का दुर्भाग्य यह है कि जनहित की दुहाई देकर जितने भी कानून अब तक बने हैं उनका सर्वाधिक दुरुपयोग अपने हित में स्वयं शासकों ने ही किया है। जो भारतीय दंड संहिता औपनिवेशिक शासकों ने 1888 में ब्रिटिश हितों के को देखते हुए तैयार की थी, आजादी के 63 वर्षों बाद भी उसका जारी रहना (कुछ संशोधनों को छोड़ कर) इस बात की ओर संकेत करता है कि शासन की बागडोर भले ही भारतीयों के हाथ में आ गई हो, व्यवस्था और शोषण तथा भ्रष्टाचार का स्वरूप आज भी अपने निकृष्टतम रूप में मौजूद है।
यहां मुंशी प्रेम चंद की वह भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य प्रतीत होती लगती है जिसके तहत उन्होंने कहा था कि अगर जॉन की जगह गोविन्द को बैठा दिया जाए और शासन प्रणाली इसी रूप में बरकरार रहे तो देश का कोई भला नहीं होने वाला है। मुझे लगता है कि कथा सम्राट की उसी पीड़ा को आज अस्सी बरस बाद अन्ना हजारे जंतर मंतर पर बैठ कर व्यक्त कर रहे हैं जिसे विदेशियों की जूतियां चाटने वाले शासक अपने लिए सिरदर्द मान रहे हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन करने से अगर देश की पचासी प्रतिशत जनता की दयनीय स्थिति में सुधार आता हो तो इन देशद्रोहियों के छल-प्रपंच की परवाह किए बिना 'छोटे गांधी' को अपना अहिंसक आमरण अनशन जारी रखना चाहिए। उनके भ्रष्टाचार मुक्ति के इस यज्ञ में समूचा देश अपने सहयोग की आहुति देगा और भ्रष्टाचारी भांडों को भगा कर ही दम लेगा ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।