आपका हृदय जो भी चाहता है वह सब होगा आपके कदमों तले-- डॉ कलाम

 

रिजवान मुस्तफा से एक मुलाक़ात के कुछ अंश  
क्या जीवन में आपकी सफलता व संघर्ष के रास्ते में अल्पसंख्यक समुदाय का होना कभी बाधा बना. एक बार बातचीत के दौरान दिल्ली की एक स्कूली छात्रा हलीमा अख्तर ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से यह सवाल किया. डॉ कलाम ने इस सवाल का जवाब पिनोक्ये के एक गीत से दिया-आप जब तारे की अभिलाषा करते हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैंआपका हृदय जो भी चाहता हैवह सब होगा आपके कदमों तले डॉ कलाम जनता के बीच लोकप्रिय हैं-खासकर युवाओं के बीच. वह युवाओं के आइकॉन हैं. उनकी नयी किताबस्पिरिट ऑफ इंडिया युवाओं के साथ उनके विशेष लगाव को दिखाती है.       
वे राष्ट्रीय राजधानी में अपने निवास 10, राजाजी मार्ग में अपनी ढेर सारी किताबों के बीच बैठे हैं. हमेशा की तरह उनका उत्साह उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है. 78 वर्षीय मिसाइल वैज्ञानिक कहते हैंउन्होंने युवाओं से मिल कर बहुत कुछ सीखा है. डॉ कलाम के अनुसार बच्चों व युवाओं  के साथ प्रश्न-उत्तर के हर सत्र से देश के महत्वपूर्ण सवालों का जवाब उन्हें मिलता रहा है.    
डॉ कलाम कहते हैं  मैं उनसे सीखता हूं और यह किताब उन्हें ही ध्यान में रख कर लिखी गयी है. संयोगवश इस किताब का लोकार्पण स्वतंत्रता दिवस के उत्सव के दौरान ही होगा. किताब का मकसद युवाओं की समझ व चिंतन को सामने लाना है. वे कहते हैं कि आमतौर से लोग मानते हैं कि देश के युवा अपना समय बरबाद करते हैं. वे बातूनी व लक्ष्यहीन हैं.
ऐसा समझना गलत है. देश के बारे में उनकी समझ गहरी है. वे देश में शांति व खुशहाली चाहते हैं.उनसे बातचीत के मुख्य अंशभारत की आत्मा किन बातों को लेकर बनती हैपिछले दस वर्षो में मैंने पूरे देश का भ्रमण किया है. मैंने लगभग 
95 लाख युवकों से मुलाकात की है. वे 54 करोड़ युवाओं के प्रतिनिधि हैं. वे देश की अमूल्य संपदा (रिसोर्स) हैं. युवाओं की क्षमता देश की महत्वपूर्ण ताकत व असली राष्ट्रीय उत्साह है. मेरा खास अनुभव रहा है कि देश के युवा शांति व खुशहाली चाहते हैं. 
किताब के जरिये इस महत्वपूर्ण संदेश को सामने लाया गया है.हम इस महत्वपूर्ण मानव संपदा का बेहतर इस्तेमाल कैसे कर सकते हैंयुवकों से बातचीत व विचारों के आदान-प्रदान के बाद मैंने देखा है कि उन्हें राष्ट्र के बारे में एक बड़ी दृष्टि की जरत है. उदाहरण के लिएभारत-2020का लक्ष्य उनके दिमाग में कौंध पैदा कर रही है. मैं समझता हूं  कि भारत-2020 के लक्ष्य पर जोर देने के लिए संसद से एक कानून पारित किया जाना चाहिए.
युवकों के मुख्य मुद्दे क्या हैं.वे किस बात को लेकर चिंतित हैआम तौर से युवा यह सवाल करते हैं कि क्या वे जिस क्षेत्र में जाना चाहते हैं
वहां उन्हें मौका मिलेगा. उन्हें इसकी चिंता रहती है. इसका जवाब यही होगा कि सीटों की संख्या बढ़ायी जाये. प्रोफेशनल कॉलेजों की संख्या बढ़ायी जाये. अगर ऐसा नहीं किया गयातो आज के प्रतियोगी युग में वे भारी दबाव में आ जायेंगे.आपने अपनी किताब में विघटनकारी राजनीति के बारे में लिखा है. क्या आप समझते हैं कि युवा बदलाव ला सकते हैं और इसीलिए अधिक संख्या में युवाओं को राजनीति में आना चाहिए.
मेरे विचार से और जिसे मैंने संसद में भी रखा था कि राजनीति का मतलब होता है-राजनीतिक राजनीति व विकासपरक राजनीति. आमतौर से किसी चुने हुए प्रतिनिधि को अपने कुल समय का 
70 फीसदी हिस्सा विकास की राजनीति के लिए देना चाहिए. उन्हें अपने क्षेत्र की जनता के  कल्याण के लिए काम करना चाहिए. और केवल 30 फीसदी समय राजनीतिक राजनीति पर दिया जाना चाहिए.
लेकिन
इसके उलटा देखा जा रहा है.जब मैं राष्ट्रपति थातो मैंने आम चुनाव में देखा था कि कम-से-कम तीन प्रदेशों में पुराने नेता ही सत्ता में आये. जब मैं बिशेषेण करता हूंतो पाता हूं कि जिसने विकासरिक राजनीति की व प्रदेश के विकास में योगदान कियावह दुबारा सत्ता में आया. यह अच्छा ट्रेंड  है. कामकाज व उपलब्धियों को महत्व दिया गया. पिछले चुनाव के बाद बड़ी संख्या में युवा संसद में चुन कर आये. हालांकिजब मैंने उनसे पूछा कि उनमें से कितने राजनीति में आगे भी रहना चाहते हैंतो बहुत कम ने हां में जवाब दिया.
क्या आप नक्सलवादियों के प्रति सरकारी रुख से संतुष्ट हैं नक्सलवाद आंतरिक समस्या है. मैं व्यक्तिगत प से विश्वास करता हूं कि भूमि सुधार न होने के कारण नक्सलवाद को बढ़ावा मिल रहा है. जहां नक्सलवादी सक्रिय हैं
वहां ओर्थक खुशहाली लायी जानी चाहिए. सरकार को नक्सलवादी इलाकों में ओर्थक बेहतरी के लिए कार्यक्रमों पर जोर देना चाहिए. जैसे -जैसे शिक्षास्वास्थ्य पर जोर पड़ेगाअधिक रोजगार सृजित होंगेअंतर कम होगा. निश्चित प से हमें वार्ता भी शु करनी चाहिए.कॉमनवेल्थ गेम्स में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं.
आपकी क्या प्रतिक्रिया है. कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के सिलसिले में मैं सचमुच भ्रष्टाचार के सवाल पर नहीं बोल सकता
लेकिन मैं महसूस करता हूं कि  यह आयोजन महत्वपूर्ण है. मैं समझता हूं कि खेल के हर विभाग में खिलाड़ियों को विशेष प्रयासों के जरिये ट्रेनिंग दी जा रही होगी. इस काम में खेल से जुड़ी विभिन्न संस्थाएं लगी होंगी. कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए जो भी खेल संसाधन विकसित किये जा रहे हैंउनसे खिलाड़ियों को बहुत फायदा होगा. यह फायदा खेलों की समाप्ति के बाद भी खिलाड़ियों को मिलेगा.
भ्रष्टाचार से मुक्ति का क्या रास्ता है 
21 नवंबर, 2005 को मैं ओदचुनचुनगिरि मठ गया था. वहां धार्मिक एकता व नागरिकों के ज्ञानोदय फाउंडेशन का कार्यक्रम था. मैं वहां कर्नाटक के विभिन्न स्कूलों-कॉलेजों के 54 हजार छात्रों से मुखातिब हुआ. ओदचुनचुनगिरि स्कूल (शिमोगा) में दसवीं कक्षा में पढ़नेवाले छात्र एम भवानी ने मुझसे पूछा  देश में कैंसर की तरह फैले भ्रष्टाचार को रोकने में छात्रों की क्या भूमिका हो?
इस प्रश्न में एक युवा मन की व्यथा झलक रही थी. मेरे लिए यह महत्वपूर्ण सवाल थाक्योंकि यह एक युवा मस्तिष्क की उलझन को दिखा रहा था. मैं सोच रहा था कि इसका हल क्या होगा. मैंने कहादेश में एक अरब लोग हैं. लगभग बीस करोड़ घर हैं. आमतौर से हर जगह अच्छे लोग हैं. इसके बाद भी हम पाते हैं कि कई लाख ऐसे घर हैंजो पूरी तरह पारदर्शी नहीं हैं. वे कानून को नहीं मानते. हम क्या कर सकते हैं. इन घरों में मां-पिता के अलावा एक बेटा या एक बेटी या दोनों हैं.

अगर इन घरों के अभिभावक पारदर्शिता पर अमल नहीं करते
तो बच्चे प्यार की शक्ति का उपयोग कर सकते हैं. वे अपने मां-पिता को सही राह पर ला सकते हैं. मैंने वहां जमा सभी बच्चों से पूछा कि अगर कुछ बच्चों के मां-पिता सही रास्ते से भटक जाते हैंतो क्या आप मजबूती के साथ अपने मां-पिता से कहेंगे कि वे सही काम नहीं कर रहे हैं. अधिकतर बच्चों ने स्वत स्फूर्त ढंग से कहा कि वे ऐसा करेंगे. यह आत्मविश्वास प्रेम की ताकत से आया था.

मैंने कुछ दूसरी मीटिंगों में यही सवाल अभिभावकों से पूछा. शुरु में सब चुप थे. बाद में उनमें से कई ने कहा कि वे बच्चों की बात मानेंगे.मेरे कहने पर छात्रों ने शपथ ली-मैं भ्रष्टाचाररहित ईमानदारी भरा जीवन बिताऊंगा व दूसरों के लिए उदाहरण पेश कंगा कि दूसरे भी जीवन में पारदर्शी रास्ता अपनायें.अंतिम रुप से मैंने छात्रों से कहा कि वे अपने अभियान की शुरुआत अपने घर से करें.

युवकों को भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हर घर को सही रास्ते पर लाना होगा.आपने अपनी किताब में लिखा है कि ईमानदारी से मेहनत करो व पूरी सफलता पाओ. क्या आप महसूस करते हैं कि यह हमारे समाज से दूर हो गया है.
21 वीं सदी में किसी एक व्यक्ति की खुशी,किसी परिवार की सफलताकिसी उद्योग का विकास और कुल मिला कर राष्ट्रों  का विकास इसी मूल सिद्धांत पर टिका है- ईमानदारीपूर्वक मेहनत करो व पूरी सफलता पाओ.

हमें देश के दीर्घकालिक विकास व शांति के लिए एक आचार नीति (ऐथक्स) की जरत है.सीमा पार तनावों के सिलसिले में आपने कहा है कि हमें क्षमा प्रदान करनेवाला होना चाहिए
,मांगनेवाला नहीं. क्या इसे आप समझायेंगे. जब आयरलैंड में क्िवंस विश्वविद्यालय के ऐशयन छात्रों के एक समूह से मैं मिलातो एक पाकिस्तानी छात्र ने सवाल कियाक्या भारत व पाकिस्तान कभी मिल कर काम कर सकेंगे . शांतिपूर्वक रह सकेंगे. मैंने यूरोपियन देशों का उदाहरण दिया कि वे सैकड़ों वर्षो तक लड़ते रहे. लेकिनआज यूरोपियन यूनियन है.

मुङो लगता है यह केवल समय की बात है. भारत बड़ी आबादीवाला बड़ा देश है. भारत टेक्नोलॉजी के मामले में समृद्ध है. यहां मानव संसाधन है. अन्य देशों की तरह भारत भी कुछ वर्षो में ओर्थक रुप से विकसित राष्ट्र बन सकता है. आज कोई भी विकसित देश तनावों
संघर्षो से मुक्त नहीं है. इसीलिए मैं यूरोपियन देशों से सीख लेकर विभिन्न पड़ोसी देशों के करीब आने की वकालत कर रहा हूं.

नजदीक आकर पड़ोसी देश टेक्नोलॉजी व अन्य ओर्थक सहयोग कर सकते हैं. विचार
प्रोडक्ट व लोगों की आवाजाही को सुगम बना कर पूरे क्षेत्र का कल्याण कर सकते हैं.स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के युवकों के नाम आपका संदेश क्या हैआकाश-पाताल सहित इस पृथ्वी पर युवाओं का तेज दिमाग सबसे बड़ी संपदा है. युवाओं को इस विश्वास को आगे बढ़ाना चाहिए कि  मैं इसे कर सकता हूं., हम इसे कर सकते हैं, व  देश इसे करेगा.मैंने एक कविता लिखी है-दृष्टिजो खासकर युवाओं के लिए ही है.

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